आज का चंद्र ग्रहण

पत्रकारों की पाठशाला

时间:2010-12-5 17:23:32  作者:आज की ताजा न्यूज़   来源:अतीक अहमद  查看:  评论:0
内容摘要:पिछले साल जब उत्तर प्रदेश के बस्ती जिले के आशीष कुमार को दिल्ली के भारतीय जन संचार संस्थान (आइआइएमसी

पिछले साल जब उत्तर प्रदेश के बस्ती जिले के आशीष कुमार को दिल्ली के भारतीय जन संचार संस्थान (आइआइएमसी) में हिंदी पत्रकारिता में दाखिला मिला तो यह उनके लिए एक सपने के सच होने जैसा था. वे इस पाठ्यक्रम के बारे में कहते हैं,पत्रकारोंकीपाठशाला "मीडिया उद्योग के दिग्गजों से प्रशिक्षण प्राप्त करने का अनुभव बहुत सुखद रहा.'' आशीष ने अभी प्रशिक्षण पूरा ही किया था कि उन्हें पौने चार लाख रु. सालाना तनख्वाह पर टाइम्स ग्रुप के नवभारत टाइम्स में नौकरी मिल गई. हिंदी पत्रकारिता की एक अन्य छात्रा 26 वर्षीया आरती कहती हैं, "संस्थान किताबी ज्ञान की जगह व्यावहारिक प्रशिक्षण और उद्योग में काम करने के अनुभव पर ज्यादा जोर देता है. मीडिया जगत के धुरंधर हमारे अतिथि शिक्षक के रूप में आते हैं और बस क्लासरूम में पढ़ाई करने के स्थान पर विद्यार्थियों को रिपोर्टिंग, अखबारों की छपाई, रेडियो और टेलीविजन कार्यक्रमों को तैयार करने के व्यावहारिक अनुभव के लिए भेजा जाता है.''आइआइएमसी में उत्कृष्ट बुनियादी सुविधाएं उपलब्ध हैं जिसमें सामुदायिक रेडियो स्टेशन, और शोध केंद्र, टेलीविजन स्टुडियो, कंप्यूटर लैब, ऑडिटोरियम और एक अच्छी लाइब्रेरी शामिल है. लाइब्रेरी में 34,000 किताबें और पत्रिकाएं हैं और संस्थान का दावा है कि मास कम्युनिकेशन की पढ़ाई से जुड़ी किताबों का यह सबसे बड़ा संग्रह है. जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय से सटा इसका हरा-भरा कैंपस और दक्षिण दिल्ली के संजय वन के बहुत पास होना इसका खूबियों को बढ़ाता है. भारतीय जन संचार संस्थान की स्थापना छह दशक पूर्व 17 अगस्त, 1965 को हुई थी. तत्कालीन सूचना-प्रसारण मंत्री इंदिरा गांधी ने इसका उद्घाटन किया था. शुरुआती वर्षों में यहां केवल केंद्रीय सूचना सेवा के अधिकारियों का प्रशिक्षण और कुछ खास शोधकार्य भर ही हुआ करते थे. आज आइआइएमसी में रेडियो और टीवी पत्रकारिता, विज्ञापन तथा जनसंपर्क, अंग्रेजी, हिंदी, ओडिया, मराठी, मलयालम और उर्दू पत्रकारिता जैसे आठ स्नातकोत्तर (पोस्ट ग्रेजुएट) डिप्लोमा पाठ्यक्रम चलाए जाते हैं. इसके नई दिल्ली कैंपस, जहां सालाना करीब 250 छात्रों का प्रशिक्षण होता है, के अलावा ओडिशा के ढ़ेकानल, मिजोरम के आइजल, महाराष्ट्र के अमरावती, केरल के कोट्टायम, जक्वमू-कश्मीर राज्य के जक्वमू में भी आइआइएमसी के क्षेत्रीय केंद्र हैं. इन सभी केंद्रों को मिलाकर सत्र 2018-19 के लिए आइआइएमसी में 430 सीटें उपलब्ध हैं. आइआइएमसी के महानिदेशक के.जी. सुरेश के अनुसार 2017-18 के सत्र में दाखिले के लिए आवेदनों की संख्या में 45 फीसदी की बढ़ोतरी हुई है. 2017-18 के सत्र में विभिन्न पाठ्यक्रमों में दाखिले के लिए करीब 6,500 विद्यार्थियों के आवेदन आए थे. यह इस बात का संकेत है कि जो लोग मीडिया में करियर बनाने की लालसा रखते हैं, आइआइएमसी उनकी पहली पसंद है. सुरेश कहते हैं, "आज हर कोई मीडिया उद्योग में मंदी की बात करता है लेकिन हमारा अनुभव इससे अलग है. सभी प्रतिष्ठित मीडिया संस्थान यहां आ रहे हैं और कैंपस से ही छात्रों को नौकरियों के अवसर मिल रहे हैं. प्लेसमेंट सत्र के दौरान ही हमारे करीब 85 फीसदी विद्यार्थियों को नौकरी मिल जाती है.'' सुरेश के अनुसार पिछले सत्र के सभी छात्र नौकरी पाने में सफल रहे थे. मीडिया उद्योग भी आइआइएमसी के छात्रों को नौकरी पर रखने में प्राथमिकता देता है. विज्ञापन और जनसंपर्क के विद्यार्थी 21 वर्षीय अंजलिदीप को ही लें. वे इंडियन फार्मर्स फर्टिलाइजर कोऑपरेटिव (इफ्को) में नौकरी के लिए इंटरव्यू की तैयारियों में जुटे हैं. उनके अनुसार इस साल उनके कोर्स में अधिकतम सालाना पैकज 13 लाख रु. का था, जो टाटा स्टील्स ने विज्ञापन तथा जनसंपर्क के दो विद्यार्थियों को दिया. करीब 85 प्रतिशत विद्यार्थियों को विभिन्न कंपनियों में 3.5-13 लाख रु. सालाना के पैकेज वाली नौकरी मिली है. सुरेश बताते हैं, "हम एकमात्र ऐसे संस्थान हैं जो विविध भाषाओं में पत्रकारिता को प्रोत्साहन देते हैं. यहां हिंदी, ओडिया, मलयालम, मराठी के पत्रकारिता पाठ्यक्रम में न केवल उन भाषाओं की महत्ता बताई जाती है, बल्कि उस भाषा में पत्रकारिता के इतिहास से भी विद्यार्थियों को परिचित कराया जाता है. इसके साथ ही संस्थान पत्रकारिता और जनसंचार के बदलते स्वरूप पर पैनी निगाह रखता है और नई-नई तकनीकों को अपनाता है. मसलन, आप न्यू मीडिया और आइटी विभाग को ही लें. दो साल पहले 20 मई, 2016 को इसे शुरू किया गया था.''न्यू मीडिया और आइटी विभाग की विभागाध्यक्ष अनुभूति यादव कहती हैं, "हम विद्यार्थियों को न्यू मीडिया के विभिन्न रुझानों और पहलुओं के बारे में प्रशिक्षण देते हैं.'' वे बताती हैं कि उनका विभाग यह पता करने की कोशिश कर रहा है कि विद्यार्थियों को जो पढ़ाया जा रहा है और मीडिया उद्योग की मौजूदा जरूरतों में क्या अंतर है. संस्थान विद्यार्थियों को सामुदायिक रेडियो स्टेशन स्थापित करने को भी प्रोत्साहित करता है. सुरेश कहते हैं, "यूनिसेफ, ऑक्सफोर्ड यूनिवर्सिटी और थॉमसन रॉयटर फाउंडेशन के साथ हमने पब्लिक हेल्थ कम्युनिकेशन प्रोग्राम शुरू किया है. विद्यार्थियों को अंतरराष्ट्रीय मानकों वाली स्वास्थ्य संचार व्यवस्था से वाकिफ होने का मौका मिला है.'' उन्होंने खासतौर से बताया कि आइआइएमसी गुट-निरपेक्ष और विकासशील देशों के विभिन्न प्रोफेशनल्स के लिए उपयोगी डेवलपमेंट जर्नलिज्म का कोर्स भी चलाता है, जिसकी अवधि चार महीने की होती है. इस पाठ्यक्रम का आयोजन भारतीय तकनीकी एवं आर्थिक सहयोग (आइटीईसी) एवं विदेश मंत्रालय के विशेष राष्ट्रमंडल अफ्रीकी सहायता योजना (एससीएएपी) कार्यक्रमों के तहत किया जाता है. अब तक 128 देशों के 1,600 पत्रकारों को इसके तहत प्रशिक्षण दिया जा चुका है.सुप्रिय प्रसाद, निधि राजदान, सुधीर चौधरी और दीपक चौरसिया जैसे मीडिया जगत के कईदिग्गज आइआइएमसी के विद्यार्थी रहे हैं. पूर्व छात्र और गूंज एनजीओ के संस्थापक अंशु गुप्ता इसी संस्थान के विद्यार्थी रहे हैं, जिन्हें प्रतिष्ठित रैमन मैग्सेसे पुरस्कार से सम्मानित किया जा चुका है. यह संस्थान भारतीय सूचना सेवा (आइआइएस) और सशस्त्र बलों का प्रशिक्षण केंद्र भी है. यह आइआइएस अधिकारियों को दो साल के प्रशिक्षण कार्यक्रम और अन्य केंद्रीय तथा राज्य सरकारों के अधिकारियों के लिए सीमित अवधि के प्रशिक्षण कार्यक्रम भी चलाता है. सुरेश बताते हैं, "हाल के दिनों में सरकार के संचार का महत्व कई गुना बढ़ गया है. सरकार जनता के साथ संवाद स्थापित करने पर बहुत जोर दे रही है. इसलिए, सरकारी संचार हमारे पाठ्यक्रम का एक अहम हिस्सा है.''संस्थान ने विश्वविद्यालय अनुदान आयोग से आइआइएमसी को मानद विश्वविद्यालय (डीम्ड यूनिवर्सिटी) का दर्जा देने का अनुरोध किया है. सुरेश कहते हैं, "हमें मानद विश्वविद्यालय का दर्जा मिल जाएगा तो हम पोस्टग्रेजुएशन के साथ एमफिल और पीएचडी की डिग्री देने के भी काबिल हो जाएंगे.''
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